ये औरत ही है ज़नाब जो बनाती है एक आदमी को आदमी से इंसान। ये औरत ही है ज़नाब जो बनाती है एक आदमी को आदमी से इंसान।
पर हाय धरती मां का सीना छलनी करने में लज्जा ना आई। पर हाय धरती मां का सीना छलनी करने में लज्जा ना आई।
मैं नारी हूं छली गई हूँ सदियों से ही अपनों से, कभी सीता बन भटकी हूँ मैंं वन-वन! मैं नारी हूं छली गई हूँ सदियों से ही अपनों से, कभी सीता बन भटकी हूँ मैंं वन-व...
हैं तैयार हम इसके शब्दों, लेखनी को अजर अमर करने को ! हैं तैयार हम इसके शब्दों, लेखनी को अजर अमर करने को !
मरते दम तक मेरी प्रियतम, साथ तुम्हारा ना छोडूंगा। मरते दम तक मेरी प्रियतम, साथ तुम्हारा ना छोडूंगा।
दुर्दिन दिन के भावावेश कहां दुर्दिन दिन के भावावेश कहां